संपादकीय: चार साल में 79% जज ऊंची जातियों से... जुडिशरी में सभी तबकों की मौजूदगी दिखे - Hindi Khabar Abtak - Hindi news, English News, Latest News in Hindi and English, Breaking News

Hindi Khabar Abtak - Hindi news, English News, Latest News in Hindi and English, Breaking News

Hindi Khabar Abtak brings you the latest news and videos from the Top Hindi Breaking News Studios in India. Stay tuned with the updated news in Hindi as Well as in English from India and the World. You can access videos and photos on your device with the Hindi Khabar Abtak.

Breaking

Home Top Ad

Post Top Ad

Responsive Ads Here

Tuesday, 10 January 2023

संपादकीय: चार साल में 79% जज ऊंची जातियों से... जुडिशरी में सभी तबकों की मौजूदगी दिखे

केंद्र सरकार ने कानून और न्याय से जुड़ी संसदीय समिति को हाल ही में सूचित किया कि 2018 के बाद से अब तक हाईकोर्टों में नियुक्त किए गए जजों में से 79 फीसदी ऊंची जातियों से हैं। कानून मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि जजों की नियुक्ति का तीन दशकों में भी के ऊपरी हिस्सों में सामाजिक विविधता स्थापित नहीं कर पाया है। 10 जनवरी के अंक में हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस विषय पर संपादकीय प्रकाशित किया है, जिसमें इस स्थिति को कलीजियम सिस्टम की कमियों से जोड़ कर देखने का प्रयास किया गया है। संपादकीय कहता है कि कलीजियम सिस्टम की जिन कारणों से आलोचनाएं होती रही हैं, उनमें एक सार्वजनिक संस्थानों में दिखने वाले सामाजिक संयोजन से उसकी कथित उदासीनता भी है। संपादकीय इसी संदर्भ में न्यायिक नियुक्तियों में हो रहे भाई-भतीजावाद के आरोपों का जिक्र करता है और इस बात का भी उल्लेख करता है कि अमान्य घोषित किए जा चुके छह सदस्यीय राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के दो प्रतिष्ठित सदस्यों में से एक एससी, एसटी, ओबीसी, महिला या अल्पसंख्यक समुदाय से होते। इन सबसे ऐसा लगता है कि अगर न्यायपालिका के ऊपरी हिस्सों में सामाजिक विविधता का अभाव है तो इसके लिए पूरी तरह कलीजियम सिस्टम दोषी है। लेकिन यह सचाई नहीं है। सामाजिक विविधता के अभाव की यह स्थिति हमें अन्य क्षेत्रों और अन्य पेशों में भी दिखती है। उदाहरण के लिए, मीडिया में भी कोई बहुत अच्छी स्थिति नहीं है। असल में यह भारतीय समाज के पारंपरिक पूर्वाग्रहों का विस्तार है और इस स्थिति को बदलने के लिए विशेष प्रयास किए जाने की जरूरत है। हालांकि विभिन्न क्षेत्रों में स्थितियां बदल भी रही हैं। उदाहरण के लिए, न्यायिक क्षेत्र की ही बात करें तो दो-तीन दशक पहले तक यह दलील चल जाती थी कि जो पूल उपलब्ध रहेगा उसी का अनुपात तो नियुक्तियों में दिखेगा। लेकिन अब लॉ की पढ़ाई कर रहे स्टूडेंट्स में समाज के हर तबके की अच्छी खासी संख्या नजर आती है। ऑल इंडिया सर्वे ऑफ हायर एजुकेशन की रिपोर्ट बताती है कि 2015-16 में एलएलबी कोर्स में महिलाओं का जो अनुपात 44 फीसदी था, वह 2019-20 में बढ़कर 53 फीसदी हो गया था। इसी तरह कुल एलएलबी एनरोलमेंट में एससी (अनुसूचित जाति) 13 फीसदी और ओबीसी 29 फीसदी हैं। जाहिर है, यह महत्वपूर्ण बदलाव है और इसकी झलक कायदे से न्यायिक नियुक्तियों में भी दिखनी चाहिए। लेकिन इस आधार पर कलीजियम सिस्टम को खारिज करने की जानी-अनजानी कोशिश ठीक नहीं है। ध्यान रहे, न्यायिक नियुक्ति की किसी व्यवस्था को चुनते या खारिज करते समय सबसे बड़ा कारक होता है न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित रहना। बहरहाल, न्यायपालिका में सामाजिक विविधता सुनिश्चित करने का प्रयास अविलंब आगे बढ़ना चाहिए।


from https://ift.tt/fFSTxXd

No comments:

Post a Comment

Post Bottom Ad