अहमदाबाद: मंगलवार की सुबह जब तुर्की और सीरिया में 7.8 तीव्रता का विनाशकारी भूकंप आया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को यूं ही नहीं दो दशक पहले का भुज भूकंप याद आया। आज भले की गुजरात का कच्छ जिला जी20 के टूरिज्म ग्रुप की मेजबानी कर रह रहा है। विदेशी मेहमान सफेद रण, कैमल सफारी, धोलावीरा का भ्रमण का रहे हैं। 26 जनवरी, 2001 की सुबह पूरा देश गणतंत्र दिवस का पर्व मना रहा था। उस वक्त नरेंद्र मोदी दिल्ली में थे। रिपब्लिक डे सेलिब्रेशन के दौरान भूकंप की तबाही की सूचना मिली तो परेड के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की अध्यक्षता में बैठक हुई। उस बैठक के बाद मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कच्छ जाने के लिए कहा गया था। यह किसी और ने नहीं बल्कि खुद अटल बिहारी बाजपेयी ने कहा था। इसके बाद नरेंद्र मोदी मिशन भुज पर निकल पड़े थे। अगली फ्लाइट से पहुंचे थे मोदी नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) उस समय बीजेपी के संगठन मंत्री से अगले दिन फ्लाइट से वे अहमदाबाद पहुंचे। खानपुर स्थित बीजेपी का कार्यालय में बैठक में शामिल हुए। इसके बाद नरेंद्र मोदी भुज पहुंचे। सरकार जहां अपने स्तर पर मदद कर रही तो नरेंद्र मोदी ने संगठन के जरिए मदद की एक और लाइन तैयार की। भूकंप से बुरी तरह तबाह हुए भुज को फिर से खड़ा करना आसान नहीं था। सरकार पर ठीक से पुर्नवास नहीं करने के आरोप लगे। इसी बीच बीजेपी राज्य पर उपचुनाव हुए तो बीजेपी साबरकांठा लोकसभा और साबरमती विधानसभा सीट हार गई। आखिरकार बीजेपी को नेतृत्व परिवर्तन के लिए विवश होना पड़ा। नरेंद्र मोदी को इस बड़ी आपदा के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी दी गई। ग्राउंड जीरो पर मौजूद रहे मोदी को शायद दिक्कतों का पता था। मोदी को उनके समाधान खोजने में दिक्कत नहीं हुई। इसके बाद मोदी ने भूकंप से तबाह भुज परिश्रम की पराकाष्ठा करके फिर से खड़ा कर दिया। खुद को पूरी तरह झोंक दिया भुज के भूकंप की तबाही और आपबीती को दुनिया तक पहुंचने वाले गुजराती अखबार कच्छ मित्र के एडिटर रहे कीर्तिभाई खत्री बताते हैं कि मुख्यमंत्री के तौर नरेंद्र मोदी एक अलग पॉलिसी लेकर आए, ये पॉलिसी ओनर ड्रिवेन थी। दूसरे शब्दों में कहें तो जनभागीदारी वाली थी, जिनके मकान तबाह हुए थे। सरकार ने उन्हें एक निश्चित मदद दी। बाकी कुछ रुपया खुद से लगाने को लगा। इसका नतीजा ये हुआ कि लोगों के अपने घर बनाने में जुड़े इससे निर्माण कार्य अच्छा हुआ। गांवों में जमीन की कमी नहीं थी तो यह काम एक साल में ही पूरा हो गया। शहरों और कस्बों में खासकर भुज की प्लानिंग और दूसरे पेपर वर्क के चलते 3 से 4 साल लग गए। खत्री कहते हैं भुज को खड़ा करना मोदी के लिए परीक्षा थी, तो उन्होंने खुद को पूरी तरह झोंक दिया। वे इसमें सफल रहे। एपीसेंटर पर मनाई दिवाली खत्री बताते हैं मोदी का एक पैर गांधीनगर में था तो दूसरा कच्छ के भुज में। उन्होंने बतौर सीएम पहली दीवाली भी भुज के चौबड़े गांव में मनाई। उन्होंने लोगों की तकलीफ से खुद को जोड़ दिया। ये वो जगह थी जहां भूकंप का एपीसेंटर था और सबसे ज्यादा तबाही हुई थी। खत्री कहते शायद मोदी ने परिश्रम किया, एक बड़ी आपदा को अवसर में बदला। खुद के लिए और कच्छ के लोगों के लिए। इससे तबाही पर वे विकास गाथा लिखने में सफल रहे। इसीलिए कच्छ और भुज उनके दिल के करीब है। स्मृतिवन निर्माण इसका सबूत है। भूकंप में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि के लिए बने इस मेमोरियल में 7R का मंत्र है इसमें रीबर्थ, रीडिस्कवर, रिस्टोर, रीबिल्ड, रीथिंक, रीलिव और रीन्यू शामिल है। भुज के फिर से खड़े होने में भी यही शब्द काम आए। मोदी ने इसी पर फोकस किया था। मेहनत से बदला भुज का भाग्य गुजरात पुलिस के पूर्व आईजीपी डीजी वंजारा कहते हैं जब भूकंप आया था, तो मैं एसआरपी ग्रुप 9 का कमांडेंट था। उस वक्त पालनपुर में था। जैसे ही आदेश मिला तो मैं कच्छ पहुंचा। नरेंद्र मोदी उस वक्त किसी सरकारी पद नहीं थे, लेकिन इसके बाद भी वे वहां पहुंचे थे। वे तबाही से बुरी तरह मर्माहित और व्यथित थे। उन्होंने पहले आरएसएस और बीजेपी के संयुक्त अगुवाई में लोगों को मदद पहुंचाने के काम में अहम भूमिका निभाई। इस दौरान उन्होंने तमाम चीजों को देखा और समझा। जब उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था तो उन्होंने भुज के निर्माण की पहली प्रथमिकता बनाया। तेज फैसले लिए, इंडस्ट्री को लेकर आए। इसके चलते भुज का भाग्य बदल गया। कच्छ के रण को उन्होंने दुनिया तक पहुंचा दिया। इसलिए ये कहना की वे भुज को भूल सकते हैं। ये मुश्किल है। उन्होंने असंभव को भी संभव कर दिया था। इससे उन्हें भी मजबूती मिली। यही वजह है कि जब तुर्की और सीरिया में भूकंप आया तो मोदी के आंखों के सामने भुज के दृश्य जरूर आए। जिसे उन्हें बयां भी किया। दोनों विनाशकारी भूकंपतुर्की-सीरिया और भुज के भूकंप में कई समानताएं हैं। भुज में आए भूकंप की तीव्रता 7.7 थी, तो तुर्की के भूकंप की तीव्रता 7.8 है। तुर्की और सीरिया की तरह भुज के भूकंप में भारी तबाही हुई थी। भुज में भूकंप में 13 हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। इन सभी के नामों को स्मृतिवन (Smritivan Earthquake Memorial and Museum) में दर्ज किया गया है। भुज के भुजियो डूंगर में बने इस मेमोरियल को 470 एकड़ में बनाया गया है। जानमाल के नुकसान के हिसाब से भुज में आया भूकंप एक जलजले के समान था। जिसने सब कुछ तहस नहस कर दिया था, लेकिन आज के भुज को देखकर कोई नहीं कह सकता की कभी इस शहर को भूकंप ने तबाह किया था। इस अगर श्रेय किसी को है तो वो मौजूद पीएम को जाता है।
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