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Monday, 6 February 2023

मोहन भागवत'कथा' पर सियासी बवाल, क्या BJP राजनीतिक दिशा बदलने जा रही है?

पटना: देश की राजनीति इन दिनों पिछड़ों और अगड़े की धूरी के केंद्र में घूमने लगी है। ऐसा लगता है कि सियासत का यह समीकरण अब भाजपा को भी रास आने लगी है। इसकी वजह भी स्पष्ट दिखने लगी है। हालांकि बिहार में एक नए तेवर के साथ पिछड़ा-अगड़ा राजनीति का बीजारोपण नए प्रसंग में राज्य के शिक्षा मंत्री प्रो चंद्रशेखर को जाता है। और इस बीजीत राजनीति को फलने फूलने के कारक बने राज्य के राजस्व मंत्री आलोक मेहता। अब एक नए रंग रूप में ( ) ने भी इस राजनीत को बढ़ावा देते भाजपा की राजनितिक धारा को नई दिशा देने का काम किया है।

मोहन भागवत ने क्या कहा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जाति व्यवस्था पर अपना पक्ष रखते साफ कहा कि जाति भगवान ने नहीं बनाई है बल्कि जाति पंडितों ने बनाई है। भगवान की धरना हमेशा यही रही है कि मेरे लिए सभी एक हैं। उनमें कोई जाति या वर्ण नहीं है। लेकिन पंडितों ने श्रेणी बनाई जो कि गलत था। आरएसएस प्रमुख ने कहा कि देश में विवेक, चेतना सभी एक है। उसमें कोई अंतर नहीं, बस मत अलग अलग है। जाति में बंटे रहने के कारण हमारे समाज के बंटवारे का ही फायदा दूसरों ने उठाया है। इसी का फायदा उठाकर हमारे देश में आक्रमण हुए और बाहर से आये लोगों ने फायदा उठाया। उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि हिंदू समाज देश में नष्ट होने का भय दिख रहा है क्या? यह बात आपको कोई ब्राह्मण नहीं बता सकता। आपको समझना होगा। हमारे आजीविका का मतलब समाज के प्रति भी ज़िम्मेदारी होती है। जब हर काम समाज के लिए है तो कोई ऊंचा, कोई नीचा या कोई अलग कैसे हो गया। कहने को तो वे कह गए। पर उनके बयान के बाद देश की राजनीति गर्म हो गई है। उनके इस वक्तव्य का राजनीतिक पार्टियां अपने अंदाज में परिभाषित करने लगी हैं।

लालू प्रसाद का आगमन और मोहन भागवत के बयान पर बढ़ गई राजनीतिक हरकत?

दरअसल, मोहन भागवत ने यह बयान हिंदुत्व की एकता को दृढ़ रखने के ख्याल से दिया गया है। परंतु राजनीतिक गलियारे में इसके निहितार्थ कई तरह की चर्चा शुरू हो गई है। मोहन भागवत के इस बयान से भाजपा भी असहज हो गई है। दरअसल भाजपा को यह डर सताने लगा है कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद बिहार आने वाले हैं। राजनीति के वे माहिर खिलाड़ी हैं। वे इस बयान को राजद की राजनीत से जोड़ कर माइलेज ले जाएंगे। भाजपा को एक बड़ा ही लालू प्रसाद की राजनीति का तीखा अनुभव है। वर्ष 2015 का विधानसभा चुनाव का पीक पीरियड था। आरएस एस प्रमुख मोहन भागवत बोल पड़े। आरक्षण का पुनर्मूल्यांकन, विवेचन का समय आ गया है ताकि सही लोगों को आरक्षण का लाभ मिल सके। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने इस बयान को यह कह कर ले उड़े कि भाजपा सरकार में आई तो आरक्षण समाप्त कर देगी। तब भाजपा के नामचीन नेताओं ने सारी ताकत लगा दी कि आरक्षण संविधान प्रदत्त सुविधा है और यह कभी समाप्त नहीं किया जा सकता। बावजूद लालू प्रसाद अपनी इस मुहिम में कामयाब हुए और भाजपा को जबरदस्त शिकस्त मिली।इस बार भी मोहन भागवत के बयान खतरा साफ दिख रहा है। भाजपा नेताओं का यह मानना है कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यह कह कर राजनीति को प्रभावित करेंगे कि हम तो पहले से ही कहते थे कि जाति व्यवस्था पंडितों यानी ब्राह्मणों की देन है। और भाजपा इसी ब्राह्मण वाद की राह पर चल गरीब गुरवा का हक मारते रही है।

बगैर देरी भाजपा का आया खंडन

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा जातिवाद को लेकर दिए गए बयान के बाद सकते में आई भाजपा के बचाव में आ गई संघ। संघ ने बड़े सलीके से भाजपा की राह को आसान करने के लिए आरएसएस के सुनील आंबेकर को आगे किया। आंबेकर ने देश में एक ही धर्म और जाति की भागवत की बात पर कहा कि वे विद्वान के लिए पंडित शब्द का उपयोग कर रहे थे। बता दें कि आरएसएस प्रमुख ने बीते दिनों कहा था कि भारत में पंडितों ने ही जाति का विभाजन किया है, नहीं तो सब एक ही जाति के थे।
जातिवाद की धूरी पर घूम रही है बिहार की राजनीति
हाल के दिनों में बिहार में अगड़ा और पिछड़ा की राजनीति को पुर जोर हवा दी जा रही है। हाल फिलहाल इस राजनीति को हवा दी राज्य के शिक्षा मंत्री प्रो.चंद्रशेखर ने। उन्होंने रामचरितमानस को अपने ढूंढ से परिभाषित करने की चेष्टा की और अगड़ा पिछड़ा की राजनीति को हवा दे दी। लगे हाथ राज्य के राजस्व मंत्री आलोक मेहता ने 90 और 10 फीसद की बात कर सवर्ण पर हमला बोला। और अब मोहन भागवत के बयान को भी इसी अंदाज में लेने की तैयारी पिछड़ों की राजनीत करने वाले ने कर दी।
क्या भाजपा की राजनीति की धारा बदलने जा रही है?
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान के बाद इस चर्चा को परवान मिलने लगा है कि भाजपा की राजनीत बदलने जा रही है। भाजपा की राजनीति में जब नरेंद्र मोदी का चेहरा सामने लाया गया तो अति पिछड़ा की राजनीत को भरपूर हवा दी गई। पर तब सवर्ण समीकरण भी साथ था। तो क्या इस बार भाजपा ब्राह्मण वाद के ही विरुद्ध खड़ी हो कर राजनितिक चिंतन में बदलाव लाना चाहती है।वरिष्ट पत्रकार अरुण पांडे कहते हैं कि मोहन भागवत के बयान को सबका साथ सबका विकाश से जोड़ कर देखा जा सकता है। जातीय जनगणना के बाद जाति की जो नया समीकरण सामने आने का अनुमान है, उसकी ओर भाजपा की राजनीति जा रही है तो यह आश्चर्यचकित करने वाली बात नहीं है। भाजपा भी अन्य दलों की तरह वोट की राजनीति करती है। और इस कारण से भाजपा बहुसंख्यक राजनीति की ओर कदम बढ़ा सकती है। पर इतना तय है कि भाजपा सवर्ण के एक दम विरुद्ध भी नहीं जा सकती। यह आरएसएस के खंडन वाले उस बयान से समझा जा सकता है जहां सुनील आंबेकर ने कहा ब्राह्मण नहीं विद्वान।(अगर आप राजधानी पटना जिले से जुड़ी ताजा और गुणवत्तापूर्ण खबरें अपने वाट्सऐप पर पढ़ना चाहते हैं तो । )


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