लखनऊ: पिछड़े वोटों में सेंधमारी के लिए समाजवादी पार्टी जातीय जनगणना की मांग को लेकर ब्लॉक स्तर पर अभियान चलाएगी। इसका निर्देश सपा मुखिया अखिलेश यादव ने पार्टी पदाधिकारियों को दिया है। समाजवादी पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. राजपाल कश्यप इस अभियान की अगुआई करेंगे। इस अभियान के तहत हर जिले के विधानसभा क्षेत्रों में ब्लॉक स्तर पर संगोष्ठियां कर अन्य पिछड़ा वर्ग समेत सभी जातियों की जातिवार जनगणना की मांग को लेकर लोगों को जागरूक किया जाएगा। खास बात यह है कि इस अभियान के पहले चरण का केंद्र पूर्वांचल होगा। इस मुद्दे को पार्टी बजट सत्र में भी उठाएगी।सपा द्वारा जारी कार्यक्रम के मुताबिक संगोष्ठी का पहला चरण 24 फरवरी से 5 मार्च तक चलेगा। इसमें 24-25 फरवरी को वाराणसी, 26-27 फरवरी को सोनभद्र, 28 फरवरी और 1 मार्च को मीरजापुर, 2-3 मार्च को भदोही में संगोष्ठी होगी। 4-5 मार्च को प्रयागराज में इस कार्यक्रम का समापन होगा।
क्यों मुद्दा बना रही है सपा?
सपा जातीय जनगणना की मांग पुरजोर ढंग से उठाती रही है। पार्टी का कहना है कि जातिवार जनगणना से विभिन्न जातियों के संवैधानिक अधिकार सुरक्षित हो सकेंगे और सभी को उनकी संख्या के अनुसार हक और सम्मान मिल सकेगा। हालांकि, इस कवायद के पीछे एक बड़ी वजह पिछड़े और दलित वोटों को अपने पाले में करना भी है। रामचरित मानस विवाद के बाद अब सपा जातीय जनगणना के मुद्दे को तेजी से आगे बढ़ा रही है। इस अभियान के जरिए पार्टी की नजर 2024 के लोकसभा चुनाव पर है। अगर मुस्लिम और यादव वोटों के साथ पिछड़ी जातियां भी साथ आती हैं तो चुनाव में परिणाम कुछ अलग हो सकते हैं। माना जाता है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा को यादवों और मुस्लिमों के साथ ओबीसी वोट भी बड़ी संख्या में मिले। इसी का नतीजा था कि करीब 10% की बढ़ोतरी के साथ सपा का वोट प्रतिशत 32% हो गया। अब सपा चाहती है कि इस मुद्दे को आगे बढ़ाकर कुर्मियों और पिछड़ा वर्ग की दूसरी जातियों को जोड़ा जा सके।नई कार्यकारिणी में भी दिखा असर
हाल ही में गठित सपा की नई कार्यकारिणी में भी इसका असर दिखा। राष्ट्रीय कार्यकारिणी में यादव और मुस्लिम के साथ दलित और अति पिछड़े समुदाय को साधने की पूरी कोशिश की गई। कार्यकारिणी में कुर्मी, जाट, निषाद, राजभर, जाटव, पासी, विश्वकर्मा, पाल चौहान समुदाय के नेताओं को जगह दी गई है।आसान नहीं होगा बीजेपी का किला भेदना
जातीय जनगणना के मुद्दे को हवा देकर बीजेपी के किले को भेदना सपा के लिए इतना आसान भी नहीं होगा। पिछले 8 साल में भाजपा ने सरकार से लेकर संगठन तक सामाजिक समीकरण दुरुस्त किए हैं। पिछड़ों, अति-पिछड़ों से लेकर दलितों तक में जनाधार बढ़ाने के साथ भागीदारी के जरिए छवि और चेहरा दोनों बदला है। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा के एक मंच पर खड़े होने के प्रयोग को भी भाजपा फेल कर चुकी है।from https://ift.tt/dWp1Pnl
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