मुंबई: बीजेपी से बीएमसी में महायुद्ध की तैयारी कर रही शिवसेना गुट को आम आदमी पार्टी में एक और नई आस दिखाई दे रही है। कुछ ही दिनों पहले दलित नेता प्रकाश आंबेडकर ने उद्धव की पार्टी के साथ राजनीतिक गठजोड़ की घोषणा की थी। दिल्ली के मुख्यमंत्री शुक्रवार को जब से मिलने उनके आवास पर पहुंचे, तो दोनों पार्टियों के बीच ऐसे ही संभावित गठजोड़ की संभावना उबरती दिखाई दे रही है। याद रहे कि शुरुआत में आंबेडकर ने तो एनसीपी नेता शरद पवार और उनकी पार्टी के साथ किसी तरह के गठबंधन में शामिल होने से इनकार कर दिया था। वे लगातार यह दबाव बनाते रहे कि उनकी पार्टी 'वंचित बहुजन आघाडी' के साथ गठजोड़ करके उद्धव ठाकरे की पार्टी एनसीपी और कांग्रेस से नाता तोड़ ले। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। गठजोड़ की अधिकृत घोषणा के समय आंबेडकर कांग्रेस और एनसीपी को व्यापक गठबंधन में शामिल होने का न्योता देते दिखाई दिए। फॉर्म्यूला यह कि उद्धव उनकी तरफ से एनसीपी-कांग्रेस ने बातचीत करेगी। जैसे आंबेडकर को एनसीपी से एक तरह की एलर्जी रही है, कुछ वैसी ही दूरी आम आदमी पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के साथ बना रखी है। इसका उसे फायदा भी मिला है। दिल्ली के बाद पंजाब में कांग्रेस के क्षय से आप का पलड़ा भारी हुआ है। वैसे, आप मुंबई महानगरपालिका चुनाव लड़ने की घोषणा पहले ही कर चुकी है, लेकिन ऐसी स्थिति बनती दिखाई नहीं दी है कि वह अपने बूते पर ये चुनाव लड़कर कोई करिश्मा दिखा सके। उसे किसी साथी की जरूरत पड़ सकती है।वामपंथी भी आएंगे साथ! बीजेपी के खिलाफ शिवसेना की धुरी पर जो जमावड़ा बन रहा है, उसके बाद अब ज्यादा विकल्प बचे नहीं रहे गए हैं। वामपंथी नेता पहले ही उद्धव से मुलाकात करके बढ़ती नजदीकी के संकेत दे चुके हैं। समाजवादी पार्टी थोड़ी खिंची-खिंची सही, मगर पहले से ही आघाडी का हिस्सा है। समता पार्टी से लेकर जनता दल के विविध धड़े भी शायद अंत में इसी धुरी पर एकत्र नजर आए, तो राजनीतिक विश्लेषकों को आश्चर्य नहीं होगा। बची रह गई एआईएमआईएम से गठबंधन करने में आप को शायद यह दिक्कत आए कि उसको फिलहाल जो प्रतिसाद मिल रहा है, वह मुस्लिम बहुल इलाकों में है। सीटों को लेकर वाद बना रहेगा।क्या है मुंबई का सियासी समीकरण? बीजेपी के खिलाफ बंगाल में ममता बैनर्जी, पंजाब में आप और बिहार में तेजस्वी यादव के पक्ष में जैसा ध्रुवीकरण दिखाई दिया है, मुंबई की लड़ाई भी उद्धव ठाकरे के आसपास सिमट जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। शिवसेना तोड़कर पार्टी का नाम छीनने का रणनीति बीजेपी के पक्ष में जाती दिखाई दे रही हो, मगर शिवसेना की शाखाओं में वैसी चीर पड़ती दिखाई नहीं दे रही। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी मुंबई में शिवसेना भवन को चुनौती देने की बजाय ठाणे में अपनी पार्टी का मुख्यालय बनाने का मन बना लिया है। वैसे, शिंदे के अलावा बीजेपी के साथ दलित नेता रामदास आठवले ढाल की तरह खड़े हैं। राज ठाकरे की पार्टी मनसे के साथ बीजेपी के आने का चर्चा अर्से से चल रही है, मगर अब नया संकट है कि क्या गठबंधन बनाते समय वह मनसे को बड़ी शक्ति स्वीकार करके शिंदे की पार्टी को खुद छोटा दिखाने का खतरा उठा सकेगी। ऐसे में, मनसे अलग चुनाव लड़कर उद्धव की पार्टी के वोट काटे, यही समीकरण ज्यादा फायदेमंद बताया जाने लगा है। ऊंट किस करवट वैठेगा, यह तो वक्त ही बताएगा।
from https://ift.tt/Pi9gSKl
No comments:
Post a Comment