के एक साल पूरे होने के कुछ दिनों पहले अचानक कीव पहुंचकर अमेरिकी राष्ट्रपति ने कई अहम संदेश दिए। इस यात्रा की पहले से घोषणा भले न हुई हो, लेकिन यह पूरी तरह सुनियोजित और सुविचारित थी। अमेरिकी राष्ट्रपति का इस तरह युद्ध क्षेत्र में पहुंचना, किसी भी सूरत में सामान्य नहीं माना जा सकता। निश्चित रूप से यह यूक्रेन को अमेरिकी समर्थन और सहायता जारी रखने का एक सशक्त संकेत है। यह ऐसे समय में आया है, जब अमेरिका में इस बात पर राजनीतिक मतभेद बढ़ रहे हैं कि भविष्य में यूक्रेन को दी जाने वाली मदद कितनी और कैसी होनी चाहिए। खैर, बाइडन की यात्रा पूरी होते ही अमेरिकी विदेश मंत्री ने यूक्रेन को और 45 करोड़ डॉलर की सैन्य सहायता देने का एलान कर दिया। अमेरिका अब तक उसे 24.9 अरब डॉलर की सैन्य सहायता देने की घोषणा कर चुका है। दोनों तरफ की तैयारियों को देखते हुए यह बात पहले से कही जा रही थी कि एक साल पूरा होने के मौके पर युद्ध और तेज हो जाएगा।रूसी हमलों में संभावित बढ़ोतरी के मद्देनजर यूक्रेन तो हथियार इकट्ठा करने में लगा ही हुआ था, यह भी कहा जा रहा था कि चीन इस युद्ध में रूस से अपनी दूरी कम करने का मन बना चुका है। अमेरिका का आरोप है कि चीन, रूस को हथियारों की सप्लाई करने जा रहा है। उसने इसे लेकर चीन को आगाह भी किया है, जिसके जवाब में चीन ने भी आक्रामक तेवर दिखाए हैं।वैसे, युद्ध के शुरू होने से पहले रूस के राष्ट्रपति चीन की यात्रा पर गए थे। तब दोनों देशों ने कहा था कि उनकी दोस्ती की कोई सीमा नहीं (नो लिमिट फ्रेंडशिप) है। अब जब युद्ध दूसरे साल की ओर बढ़ रहा है तो कहा जा रहा है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग रूस जा सकते हैं। उन्हें रूस से इसका न्योता मिला है। अगर ऐसा हुआ तो अमेरिका के साथ चीन-रूस की तल्खी और बढ़ेगी। इस बीच, पुतिन ने मंगलवार को एक संबोधन में कहा कि वह अमेरिका के साथ परमाणु अस्त्र नियंत्रण संधि को निलंबित करने जा रहे हैं, जो 2011 में लागू हुई थी। वैसे, अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने पिछले महीने एक रिपोर्ट में दावा किया था कि रूस इस संधि का उल्लंघन कर रहा है।पुतिन ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि पश्चिमी देशों के उकसावे की वजह से युद्ध हुआ और वह यूक्रेन में सैन्य अभियान जारी रखेंगे। इस बीच, यूक्रेन युद्ध की कीमत खासतौर पर गरीब और विकासशील देश चुका रहे हैं, जिन्हें खाद्य संकट, फर्टिलाइजर की कमी और पेट्रोल-डीजल की महंगाई से जूझना पड़ रहा है। कई देश तो इसी वजह से जबरदस्त आर्थिक संकट में फंस गए हैं। इस संकट को खत्म करने के लिए शांति कायम होनी चाहिए।
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