बेंगलुरु: चुनाव (Karnataka Assembly Election) में एक महीने से भी कम वक्त बचा है। 224 विधानसभा सीटों के लिए 10 मई को वोट डाले जाएंगे और नतीजे 13 मई को आएंगे। बीजेपी, कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर JD(S) तीनों ही दलों ने जोर लगाया है। बीजेपी (BJP) के सामने सत्ता बचाने की चुनौती है तो वहीं कांग्रेस (Congress) की ओर से इस चुनाव में पूरा जोर लगाया जा रहा है। लगभग सभी दलों की ओर से टिकट भी फाइनल कर दिया गया है। बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस के बीच कई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला है तो वहीं कई जगह कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है। पिछले कुछ चुनावों के पैटर्न को देखा जाए तो धीरे-धीरे अधिकांश सीटों पर मुकाबला सिर्फ दो दलों के बीच ही देखने को मिला। जिन विधानसभा सीटों पर बीजेपी के साथ कांग्रेस का सीधा मुकाबला था वहां बीजेपी की जीत का स्ट्राइक रेट बढ़िया था। 77 फीसदी सीटों पर दो दलों के बीच सीधा मुकाबला2018 के चुनाव को देखा जाए तो कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों में से आधे में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला देखा गया और इन सीटों पर बीजेपी का स्ट्राइक रेट 50 फीसदी के करीब था। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में 2018 में 77 फीसदी सीटें ऐसी थी जहां सिर्फ दो दलों के बीच ही सीधा मुकाबला था। इनमें कहीं बीजेपी और कांग्रेस तो कहीं बीजेपी और जेडीएस के बीच सीधा मुकाबला था। इसमें 2008 और 2013 के चुनाव के बाद से बदलाव देखने को मिला है। 2008 से पहले देखा जाए तो केवल 50 फीसदी सीटें ऐसी रही जहां सीधा मुकाबला था और 2018 आते-आते यह 77 फीसदी हो गया। साथ ही जहां सीधा मुकाबला है वहां बीजेपी को इसका फायदा होता दिखा है। 2004 के बाद बदला कर्नाटक का चुनावपिछले कुछ वर्षों में इन तीन पार्टियों के बीच मुकाबला कैसे शिफ्ट हुआ इस पर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2004 का वह दौर ऐसा था जब प्राथमिक मुकाबला कांग्रेस बनाम जेडी (S) से कांग्रेस बनाम BJP बीजेपी की ओर शिफ्ट हुआ। उस साल चुनाव खंडित जनादेश के साथ संपन्न हुआ था। बीजेपी ने 79, कांग्रेस ने 65 और जेडी(एस) ने 58 सीटें जीती थीं। महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी पार्टी 2004 के बाद से कर्नाटक में अपने दम पर 123 सीटों के बहुमत के आंकड़े को पार नहीं कर पाई है। 2013 में कांग्रेस उसके सबसे करीब आ गई थी, जब उसने 122 सीटें जीती थीं।यूपी में मिला फायदा क्या कर्नाटक में भी होगा ऐसादो दलों के बीच जब सीधा मुकाबला रहा है तो इसका फायदा सिर्फ कर्नाटक में ही बीजेपी को नहीं मिलता दिखाई दिया है। उत्तर प्रदेश के चुनावों को देखा जाए तो वहां भी कुछ इसी तरह के आंकड़े हैं। साल 2012 में यूपी में केवल 8 फीसदी सीटें ऐसी थीं जहां सीधा मुकाबला दो दलों के बीच था लेकिन 2022 के चुनाव में यह 71 फीसदी था। सीधे मुकाबले में बीजेपी को फायदा मिला तो वहीं समाजवादी पार्टी को नुकसान हुआ।
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