नई दिल्ली: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने 4 बार में अब तक 222 उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं। पहली लिस्ट 11 अप्रैल को जारी हुई थी, जिसमें 189 के लोगों के नाम थे। 12 अप्रैल को 23 उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी हुई। तीसरी लिस्ट 17 अप्रैल को 10 उम्मीदवारों की और चौथी व आखिरी सूची में सिर्फ दो ही नाम हैं, इसलिए कि पहले ही 222 नामों की सूची जारी हो गई थी। कर्नाटक चुनाव की खास बात यह है कि बीजेपी ने लगभग 6 दर्जन नये लोगों को इस बार चुनाव मैदान में उतारा है। नये लोगों को अवसर देने का नुस्खा बीजेपी का परखा हुआ है। गुजरात चुनाव में उसे इसका बेहतर परिणाम मिला था।
गुजरात में भी नये लोगों को BJP ने दिया था टिकट
गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पर्टी (AAP) ने जिस तरह की सियासी हलचल मचाई थी, उससे लगता था कि बीजेपी को भारी नुकसान होगा। एंटी इन्कम्बैंसी का भय भाजपा को भी था। बीजेपी ने इससे बचने के लिए नये उम्मीदवारों को उतारने की रणनीति बनाई। 45 विधायकों के टिकट काट दिए गए। इससे बीजेपी को थोड़ी नाराजगी भी झेलनी पड़ी। इन सबके बावजूद जब परिणाम आया तो सभी दंग रह गए। बीजेपी को बहुमत मिल गया। कांग्रेस पार्टी की बुरी स्थिति रही। बीजेपी का विकल्प बनने चली आप को भी कोई खास कामयाबी नहीं मिली।गुजरात में 45 नये चेहरे बीजेपी ने उतारे थे, 43 जीते
बीजेपी ने बड़ी बेरहमी से विधायकों के टिकट काटे थे। यहां तक कि पूर्व सीएम विजय रूपाणी का भी टिकट काट दिया। इसका सुखद परिणाम बीजेपी को यह मिला कि जिन 45 नये लोगों को टिकट मिला, उनमें 43 जीत भी गए। बीजेपी को 182 सदस्यों वाली विधानसभा के चुनाव में 52.5 प्रतिशत वोट तो मिले ही, उसे 156 सीटों पर कामयाबी भी मिल गई। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस 27 फीसदी वोटों के साथ 17 सीटों पर सिमट गई। आप को पांच सीटें हासिल हुईं और करीब 13 प्रतिशत मत मिले।कर्नाटक में भी गुजरात का प्रयोग दोहरा रही है भाजपा
बीजेपी ने पुराने लोगों को बदल कर नये चेहरों को चुनाव में उतारने का नुस्खा आजमा लिया है। गुजरात में यह प्रयोग सफल रहा था। इसीलिए कर्नाटक में भी बीजेपी ने नये चेहरों पर जोर दिया है। 71 नये लोगों को इस बार टिकट दिये गये हैं। 22 विधायकों के टिकट काट दिए हैं। इनमें कुछ ने तो चुनाव लड़ने से अनिच्छा भी जताई थी। इससे पार्टी के भीतर नाराजगी भी है। पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार ने तो अपने परिवार के लिए एक टिकट मांगा था, लेकिन बीजेपी ने उनकी मांग अनसुनी कर दी। इससे खफा होकर वे कांग्रेस के साथ चले गए हैं। उनके अलावा टिकट न मिल पाने से नाराज के. रघुपति भट, एस अंगारा, एसए रामदास और नेहरू ओलेकर ने भी बीजेपी को बाय बोल दिया है।लोकसभा चुनाव में भी कई के टिकट कटने का खतरा
गुजरात की तरह कर्नाटक में बीजेपी प्रयोग अगर सफल रहता है तो आसन्न लोकसभा चुनाव में इसे दोहराये जाने की संभावना है। कुछ बड़े नेताओं को अगर लोकसभा चुनाव का टिकट न मिले तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। दरअसल एंटी इन्कम्बैंसी के खतरे को कम करने में नये चेहरे बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। इसलिए कई टर्म से जमे सांसादों के टिकट काटे जा सकते हैं। बीजेपी ने वैसे भी सक्रिय राजनीति की उम्र सीमा तय कर दी है। कुछ तो इस पैरामीटर पर ही छंट जाएंगे और कुछ के टिकट परफार्मेंस के आधार पर काट दिए जाएंगे। रिपोर्ट-ओपी अश्कfrom https://ift.tt/FeLmkuP
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