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Tuesday, 18 April 2023

क्या होती है फ्रेंचाइजी? इसे लेकर कैसे खड़ा करें शानदार बिजनस, एक्सपर्ट्स से समझिए

नई दिल्ली : अपना स्टार्टअप शुरू करने के बाद बहुत-से लोग उसकी फ्रेंचाइजी देते हैं या अपने बिजनेस के आउटलेट्स खोलते हैं। दरअसल, प्रोडक्ट को कस्टमर तक पहुंचाना काफी चुनौती भरा होता है। फ्रेंचाइजी कैसे दें, सप्लाई चेन क्या है और डिस्ट्रिब्यूटरशिप कैसे काम करती है? एक्सपर्ट्स से जानकारी लेकर बता रहे हैं राजेश भारती। आपने मैकडॉनल्ड्स, डोमिनॉज, चाय सुट्टा बार, चायोस, पीटर इंग्लैंड जैसे ब्रैंड्स के आउटलेट्स काफी जगहों पर देखे होंगे। ये सारे आउटलेट्स फ्रेंचाइजी मॉडल पर आधारित होते हैं। इन कंपनियों से संपर्क करके आप भी इनका आउटलेट खोल सकते हैं। माना जाता है कि अगर किसी शख्स के पास बिजनेस करने के लिए ज्यादा रकम नहीं है तो ऐसी कंपनियों की फ्रेंचाइजी लेकर भी अपना बिजनेस कर सकता है। अगर आप स्टार्टअप शुरू करना चाहते हैं तो ऐसा करने के बाद आप भी दुनियाभर में अपनी फ्रेंचाइजी दे सकते हैं।

क्या है फ्रेंचाइजी

फ्रेंचाइजी में कंपनी का नाम, लोगो, कंपनी मॉडल, कंपनी का सिस्टम, प्रोडक्ट, सर्विस आदि के अधिकार किसी थर्ड पार्टी को बेचा जाता है। इसे ही फ्रेंचाइजी देना कहा जाता है। यह एक कानूनी अधिकार है। इसमें कम से कम दो पक्ष होते हैं। पहला फ्रेंचाइजर जो ब्रैंड का ट्रेडमार्क, बिज़नेस सिस्टम, नाम पहले ही अमूमन सबकुछ स्थापित करवा चुका होता है। दूसरे पक्ष में ज्यादातर मामलों में एक व्यक्ति होता है। वह मिले हुए इस अधिकार के बदले कुछ फंड का फ्रेंचाइजर को भुगतान करता है। बदले में उसे कंपनी का बना-बनाया सिस्टम मिल जाता है।

ऐसे समझें

मान लीजिए, आपने दिल्ली में चाय बनाकर बेचने का बिज़नेस शुरू किया। लोगों को आपकी बनाई चाय का टेस्ट और उसे सर्व करने का खास तरीका पसंद आने लगा हो। एक दिन मुंबई से मोहित आपके पास आते हैं। उन्हें भी आपकी चाय पसंद आती है। मोहित आपसे कहते हैं कि आप अपना एक आउटलेट मुंबई में खोलिए। आपके पास न तो समय है और न ही लोग कि मुंबई में आउटलेट खोला जाए और वहां पूरी नजर रखी जाए। ऐसे में आप मोहित से कहते हैं कि वह हमारे ब्रैंड के नाम से आउटलेट खोलें। यही प्रक्रिया फ्रेंचाइजी कहलाएगी। फ्रेंचाइजी लेने के बाद मोहित को आउटलेट खोलने और इंटीरियर में कुछ रकम खर्च करनी होगी। चाय बनाने की मशीन से लेकर, चाय की पत्ती, चाय मसाला आदि जैसी चीजें आप खुद उन्हें देंगे। इसके बदले मोहित को इसकी कीमत आपको देनी होगी। मोहित को महीने में 1 लाख रुपये की कारोबार (प्रोफिट नहीं) होती है तो उन्हें इस रकम में से 2 से 5 फीसदी रॉयल्टी देनी पड़ेगी। यह रॉयल्टी आपकी कंपनी के लिए होगी। रॉयल्टी की रकम ब्रैंड के नाम के अनुसार कम या ज्यादा भी हो सकती है। हालांकि कुछ कंपनियां रॉयल्टी नहीं लेती लेकिन वे फ्रेंचाइजी को अपनी तरफ से सामान बेचती हैं, जिसकी कीमत फ्रेंचाइजी लेने वाले शख्स को चुकानी पड़ती है। कंपनी इसी में प्रोफिट कमाती है।

कब दें फ्रेंचाइजी

स्टार्टअप शुरू करने के बाद अक्सर दिमाग में यह बात आती है कि फ्रेंचाइजी कब देनी चाहिए। एक्सपर्ट कहते हैं कि फ्रेंचाइजी देने में कभी भी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। जब तक लोग आपके प्रोडक्ट या सर्विस की तारीफ न करने लगें और खुद आगे बढ़कर फ्रेंचाइजी न मांगे, फ्रेंचाइजी देना शुरू न करें। फ्रेंचाइजी देने से पहले ये सवाल खुद से पूछें:- क्या मेरा बिज़नेस बढ़िया चल रहा है?- क्या मुझे बिज़नेस की खूबियों और खामियों के बारे में पता है?- क्या मुझमें बिज़नेस चलाने की समझ विकसित हो गई है?- क्या मेरी कंपनी के ब्रांड की पहचान बड़ी हो गई है?- क्या मैं फिर से ऐसा ही बिज़नेस शुरू कर सकता हूं?अगर इन सवालों के जवाब 'हां' हैं तभी फ्रेंचाइजी देने की दिशा में कदम बढ़ाएं।

कैसे दें फ्रेंचाइजी

जब आप बिज़नेस की फ्रेंचाइजी देने के लिए तैयार हों तो इन स्टेप्स को फॉलो करें:1. बिज़नेस का मूल्यांकनअपने बिज़नेस का मूल्यांकन करें। इसमें देखें कि आपको कितना प्रोफिट हो रहा है, मार्केट में डिमांड कैसी है, आपके बिज़नेस का मॉडल दूसरों के मुकाबले किस प्रकार अलग है। इसके आधार पर ही आप फ्रेंचाइजी फीस तय कर पाते हैं।2. पब्लिसिटी करेंफ्रेंचाइजी देने के लिए लोगों को यह बताना जरूरी है कि आप फ्रेंचाइजी देने के इच्छुक हैं। इसके लिए ये तरीके अपनाएं:वेबसाइट के जरिए: अगर आप अपने बिज़नेस की फ्रेंचाइजी देना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी वेबसाइट पर इसकी जानकारी दें। वेबसाइट के पेज पर जहां मेन्यू होता है, वहां इसके लिए कोई ऑप्शन जैसे- PARTNER WITH US, BUSINESS WITH US, OPEN FRANCHISE, GROW WITH US आदि लिखवाएं और इसमें रिक्वेट फॉर्म भरवाएं। इस फॉर्म में फ्रेंचाइजी लेने वाले शख्स का नाम, उसकी ईमेल आईडी, शहर, मोबाइल नंबर, मेसेज देने आदि के लिए जगह होनी चाहिए। जब भी कोई शख्स फ्रेंचाइजी लेना चाहेगा तो वह यहां क्लिक करेगा। क्लिक करने के बाद वह अपनी जानकारी भरेगा। बाद में आप उसे कॉल करके आगे की बात कर सकते हैं।सोशल मीडिया के जरिए: सोशल मीडिया के जरिए भी आप लोगों काे बता सकते हैं कि अपने बिज़नेस की फ्रेंचाइजी देना चाहते हैं। इसके लिए फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि की मदद लें। लिंक्डइन पर भी फ्रेंचाइजी इन्विटेशन पोस्ट कर सकते हैं। इसके अलावा अखबारों में विज्ञापन देकर भी फ्रेंचाइजी के लिए इच्छुक लोगों की रिक्वेस्ट मंगवा सकते हैं।3. सिलेक्शन करेंहो सकता है कि आपके पास फ्रेंचाइजी के लिए काफी रिक्वेस्ट आएं। हर किसी को फ्रेंचाइजी नहीं देनी चाहिए। पहले जान लें कि फ्रेंचाइजी लेने वाला शख्स इसे चला पाएगा या नहीं। उसका पिछला बिज़नेस रेकॉर्ड मांगे और उसे अपनी टीम के किसी शख्स से क्रॉसचेक करवाएं। सारी चीजों से संतुष्ट होने के बाद ही उस शख्स को चुनें जिसे आप फ्रेंचाइजी देना चाहते हैं।4. डॉक्यूमेंट्स तैयार करेंजिसे फ्रेंचाइजी देना चाहते हैं, उसके साथ कुछ लीगल डॉक्यूमेंट तैयार करने पड़ते हैं। ये डॉक्यूमेंट इस प्रकार हैं:फ्रेंचाइज़ी अग्रीमेंट: फ्रेंचाइजी देते समय अपनी कंपनी और जिसे फ्रेंचाइजी दे रहे हैं उसके बीच एक फ्रेंचाइजी अग्रीमेंट तैयार करवा लें। यह एक लीगल डॉक्यूमेंट होता है जिसमें लिखा होता है कि उस शख्स को अपने ब्रांड का नाम, लोगो, ट्रेडमार्क आदि का इस्तेमाल करके प्रोडक्ट या सर्विस बेचने की इजाजत कंपनी की ओर से दी जाती है। इस अग्रीमेंट में बिज़नेस से संबंधित सारी चीजें लिखी होती हैं और इसपर कंपनी और फ्रेंचाइजी लेने वाले के साइन होते हैं।FDD: यह भी एक लीगल डॉक्यूमेंट होता है। इसका पूरा नाम Franchise Disclosure Document है। इस डॉक्यूमेंट में फ्रेंचाइजी फीस, रॉयल्टी, ऑपरेटिंग सिस्टम, मार्केटिंग और एडवरटाइजिंग, प्रोपर्टी के जुड़े नियम आदि शामिल होते हैं। साथ ही यह भी लिखा होता है कि फ्रेंचाइजी चलाने के लिए कौन-कौन सी ट्रेनिंग दी जाएंगी और क्या-क्या सपोर्ट मिलेगा। साथ ही इसमें फ्रेंचाइजी की पॉलिसी और उससे जुड़े नियम भी शामिल होते हैं।5. ट्रेनिंग और सपोर्ट देंसारी चीजें फाइनल होने के बाद अब बारी आती है ट्रेनिंग देने की। जो शख्स फ्रेंचाइजी लेता है, वह एक आउटलेट या स्टोर खोलता है और लोगों की भर्ती करता है। उन लोगों को चीजें कैसे तैयार करनी है, बिल कैसे बनाना है आदि की ट्रेनिंग देनी होती है। यह ट्रेनिंग कंपनी की ओर से दी जाएगी। यह ट्रेनिंग वहां जाकर या विडियो के जरिए या फोन के जरिए दी जा सकती है।

जब फ्रेंचाइजी लेकर शुरू करना हो बिजनेस

आप अपना बिज़नेस शुरू करने की जगह किसी कंपनी की फ्रेंचाइजी लेकर भी शुरुआत कर सकते हैं। इसके लिए कुछ रकम की जरूरत पड़ती है। यह रकम 5-10 लाख या इससे ज्यादा भी हो सकती है। यह उस कंपनी की ब्रैंड वैल्यू पर निर्भर करती है जिसकी फ्रेंचाइजी आप लेना चाहते हो।

क्या है फ्रेंचाइजी लेने का तरीका

आप जिस किसी भी कंपनी या ब्रांड की फ्रेंचाइजी लेना चाहते हैं, उसकी ऑफिशल वेबसाइट पर जाएं। वहां आपको PARTNER WITH US या BUSINESS WITH US या OPEN FRANCHISE आदि लिखा दिखाई देगा। वहां क्लिक करें और मांगी गई पूरी जानकारी भरें। इसके बाद वह कंपनी आपको दिए हुए नंबर पर कॉल करेगी या ईमेल भेजेगी।- फ्रेंचाइजी देने के बदले कंपनी आपसे कुछ रकम फ्रेंचाइजी फीस के रूप में लेती है। यह वापस नहीं की जाती। हालांकि कुछ कंपनियां फ्रेंचाइजी फीस नहीं भी लेती। आप जहां फ्रेंचाइजी खोलेंगे, उसका किराया और दूसरे खर्चे आपको ही करने होंगे। कुछ कंपनियों कई खर्चे उठाती हैं।- हर फ्रेंचाइजी कंपनी महीने में होने वाली बिक्री पर रॉयल्टी लेती हैं। यह रॉयल्टी 2% से 20% या इससे ज्यादा भी हो सकती है। साथ ही कुछ कंपनियां अपने प्रोडक्ट फ्रेंचाइजी आउटलेट पर रखती हैं। उनके बिकने पर जो प्रोफिट होता है, उसमें से कुछ प्रतिशत कमीशन लेती हैं। ऐसे में कंपनी से रॉयल्टी और कमीशन के बारे में पूरी जानकारी लें। अग्रीमेंट को अच्छे से पढ़ें।

गारंटी को गंभीरता से लें

जब भी कोई कंपनी फ्रेंचाइजी देती है तो उसका दावा होता कि वह हर महीने कुछ बिज़नेस देगी। यह बिज़नेस उस कंपनी के उस क्षेत्र में मौजूद कस्टमर के आधार पर होता है। अगर कंपनी कहती है कि वह फ्रेंचाइजी लेने पर आपको हर महीने 2 लाख रुपये का बिज़नेस देगी तो कंपनी से पूछें कि वह किस आधार पर हर महीने 2 लाख रुपये के बिज़नेस देने का दावा कर रही है। कहीं ऐसा तो नहीं कि फ्रेंचाइजी देने के लिए कंपनी उलटे-सीधे दावे कर रही हो। यह समझना जरूरी है कि बिज़नेस का दावा अगर किया जा रहा है तो वह कहां से आएगा। अगर आपको कुछ भी संदेह दिखाई दे तो बेहतर होगा कि उस कंपनी की फ्रेंचाइजी लेने से बचें।

देखरेख भी जरूरी

सिर्फ फ्रेंचाइजी देना ही काफी नहीं है। फ्रेंचाइजी की देखरेख और साफ-सफाई मेंटेन रहे, यह देखना भी कंपनी की जिम्मेदारी होती है। खासकर अगर खानपान से जुड़ा बिज़नेस है तो यह जिम्मेदार ज्यादा बढ़ जाती है। इसका कारण है कि अगर ग्राहक को जरा-सी भी कमी दिखाई दी तो वह सोशल मीडिया पर इसकी शिकायत कर सकता है। इससे फ्रेंचाइजी लेने वाले को तो नुकसान होगा ही साथ ही, ब्रांड की इमेज भी खराब हो सकती है। समय-समय पर आउटलेट को चेक करना होता है।

सप्लाई चेन क्या है

किसी भी प्रोडक्ट या सर्विस को कस्टमर तक पहुंचाने में जिस नेटवर्क का इस्तेमाल किया जाता है, सप्लाई चेन कहलाती है। इसमें कच्चा सामान, कंपोनेंट्स, डिस्ट्रिब्यूटर, होलसेलर, रिटेलर (फुटकर विक्रेता) और कस्टमर शामिल होते हैं।मैन्युफैक्चरर: ये कच्चे माल से नया प्रोडक्ट बनाते हैं। मैन्युफैक्चरर कई तरह की प्रक्रियाओं, क्वॉलिटी कंट्रोल और सुरक्षा मानकों के अनुसार अपना प्रोडक्ट तैयार करता है।होलसेलर: ये वे लोग या कंपनी होती हैं जो प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनी को बल्क यानी बहुत सारी मात्रा में सामान बनाने का ऑर्डर देते हैं।सेल्स और प्रमोशन: जब प्रोडक्ट दुकानदार के पास पहुंच जाता है तो उसकी सेल बढ़ाने के लिए उसका प्रमोशन भी किया जाता है।सप्लायर: सप्लायर वह होता है जो प्रोडक्ट बनाने में लगने वाला कच्चा माल मुहैया कराता है। किसी भी इंडस्ट्री में कच्चे मल की उपलब्धता काफी अहम है।रीटेलर: ये वे लोग या कंपनी होते हैं जो होलसेलर्स से खरीदे हुए सामान को स्थानीय कस्टमर्स को बेचते हैं। इनके प्रॉफिट का प्रतिशत भी ज्यादा होता है।कस्टमर: सप्लाई चेन का सबसे आखिरी मेंबर कस्टमर होता है। यह स्थानीय दुकानदार से सामान खरीदता है। इसे ही एंड यूजर्स भी कहते हैं।

तकनीक से आया यह बदलाव

मैन्युफैक्चरर से सीधे कस्टमर तक: पुराने सिस्टम से नए सिस्टम की ओर सप्लाई चेन ने लंबा सफर तय किया की है। कंपनियां अपने माल को सीधे कस्टमर तक पहुंचा रही हैं। इसके लिए वे अपनी वेबसाइट, एमजॉन और फ्लिपकार्ट जैसे प्लैटफॉर्म का सहारा भी ले रही हैं। इससे कई स्तर पर कमिशन बच जाता है। कस्टमर को कम कीमत पर प्रोडक्ट्स मिल जाते हैं।मैन्युफैक्चरर से रीटेलर और कस्टमर: इसमें सप्लायर यानी डिस्ट्रिब्यूटर और होलसेलर के सेक्शन को हटा दिया गया है। मैन्युफैक्चरर अपना माल सीधे रीटेलर यानी दुकानदार को भेजते हैं। रिटेलर ही सामान कस्टमर को देते हैं। इससे कंपनी की सीधी डीलिंग होती है। यह चलन भी काफी देखा जा रहा है।

लोकल शॉप तक कैसे पहुंचाएं

अगर आपका स्टार्टअप किसी प्रोडक्ट को बनाने से जुड़ा है तो उसे ग्राहक तक पहुंचाना जरूरी है। इसके लिए जरूरी है कि वह पहले स्थानीय दुकान तक पहुंचे। इसमें ये 4 टूल काम आते हैं:1. सोर्सिंग: मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्ट बनाने के लिए सप्लायर से कच्चा सामान या रिसोर्स लेता है। सोर्सिंग जितनी नज़दीक हो, खर्च उतना ही कम आता है।2. प्रोडक्शन: मैन्युफैक्चरिंग की कई तरह की प्रक्रियाओं, क्वॉलिटी कंट्रोल और सुरक्षा मानकों के अनुसार अपना प्रोडक्ट तैयार करता है। 3. डिस्ट्रिब्यूशन: प्रोडक्ट तैयार होने के बाद मैन्युफैक्चरर इसे स्थानीय या नैशनल डिस्ट्रिब्यूटर तक पहुंचाता है। हर शहर के होलसेलर या रीटैलर के पास पहुंचाते हैं।4. सेल्स और प्रमोशन: जब प्रोडक्ट दुकानदार के पास पहुंच जाता है तो उसकी सेल बढ़ाने के लिए उसका प्रमोशन भी किया जाता है। यह प्रमोशन कंपनी की ओर से किया जाता है।

ब्रांच कब खोलें?

ऐसे लोग भी होते हैं जो अपने बिज़नेस को फ्रेंचाइजी मॉडल पर ले जाने की जगह उसके लिए अपना ही स्टोर या ब्रांच खोलना पसंद करते हैं। ऐसे लोगों का मानना होता है कि वे अपने बिज़नेस का प्रोफिट किसी दूसरे शख्स के साथ शेयर नहीं करना चाहते। अगर आप भी अपने बिज़नेस की ब्रांच खोलना चाहते हैं तो इसके लिए पहले इन बातों का ध्यान रखें:मार्केट की डिमांड: आप जहां अपना स्टोर या ब्रांच खोलना चाहते हैं, वहां रिसर्च के जरिए यह जानने की कोशिश करें कि क्या वहां आपके टार्गेट कस्टमर हैं? अगर कस्टमर हैं तो ही आगे बढ़ें। इसके बाद देखें कि क्या वहां आपका कोई दूसरा प्रतियोगी है? अगर है तो आप उससे अलग क्या करेंगे? क्या कीमत में समझौता करेंगे या कोई दूसरी योजना बनाएंगे?जगह: आप जहां अपना स्टोर या ब्रांच खोलना चाहते हैं, वहां देखें कि वह जगह कैसी है। जगह साफ-सुथरी होनी चाहिए। सुरक्षा के लिहाज से भी जगह सही होनी चाहिए। साथ ही बेहतर होगा कि वहां पार्किंग की भी सुविधा हो ताकि गाड़ी लेकर आने वाले कस्टमर आने में हिचकिचाएं नहीं। सच तो यह है कि लोकेशन की वजह से ही फुटफॉल बढ़ते हैं।समय: स्टोर या ब्रांच खोलने के लिए सही समय और सही मौसम भी जरूरी है। कई चीजें ऐसी होती हैं जो किसी खास समय पर ज्यादा बिकती हैं। जैसे- मान लीजिए कि आप आइसक्रीम से जुड़ा बिज़नेस शुरू करने जा रहे हैं या बिज़नेस पहले से है और उसकी कोई ब्रांच या कोई दूसरा स्टोर खोलने जा रहे हैं तो बेहतर होगा कि गर्मियों में शुरू करें।फाइनैंशल रिसोर्स: सारी चीजें ओके होने के बाद अब बारी आती है फाइनैंशल रिसोर्स की यानी स्टोर जहां होगा, वह जगह किराए की होगी या खरीदनी होगी। इसके अलावा इन्वेंट्री (जिस चीज का बिज़नेस शुरू करेंगे वह सामान), उपकरण, स्टाफ आदि में भी रकम खर्च होगी। इनमें एक बार में होने वाले खर्च और मासिक खर्च का अनुमान लगाएं।बिज़नेस का भविष्य: जहां भी स्टोर या ब्रांच खोल रहे हैं, वहां भविष्य में बिज़नेस कैसा होगा, इसके बारे में भी विचार करें। मान लीजिए, आपका बिज़नेस किसी सोसायटी की ओपन मार्केट में है तो देखें कि फ्यूचर में वहां क्या और सोसायटी बनेंगी? अगर हां तो आपका बिज़नेस फ्यूचर में और बढ़ेगा क्योंकि सोसायटी बनने से लोगों की संख्या बढ़ेगी और कस्टमर बढ़ेंगे।

सवाल-जवाब

हम आपसे हर हफ्ते आपके बिज़नेस से जुड़े सवाल पूछ रहे हैं। हमें काफी सवाल मिले। चुनिंदा सवालों के जवाब दे रहे हैं AI Champs कंपनी के डायरेक्टर कार्तिक शर्मा:सवाल: बिना GST के ऑनलाइन प्रोडक्ट बेचने का बिज़नेस कैसे कर सकते हैं?- राहुलजवाब: अगर आपके बिज़नेस का सालाना टर्नओवर 40 लाख रुपये (कुछ राज्यों जैसे- अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर आदि में 20 लाख रुपये) से कम है तो आपको GST की जरूरत नहीं है। ऐसे में आप बिना GST के ऑनलाइन बिज़नेस शुरू कर सकते हैं। बिना GST के किसी भी सामान को ऑनलाइन बेचने के दौरान इन बातों का भी ध्यान रखें:- बिक्री और खर्चे का सही और पूरा रेकॉर्ड रखें।- अगर आपके पास GST नहीं है तो आप बेचे गए प्रोडक्ट पर भी GST नहीं ले सकते। प्रोडक्ट पर भी इसके बारे में लिखा होना चाहिए।- अपने टर्नओवर पर नज़र रखें। अगर सालाना टर्नओवर 40 लाख रुपये से ज्यादा होता है तो GST फाइल करना पड़ेगा।- GST के नियमों में समय-समय पर बदलाव होते रहते हैं। इन पर नज़र रखें और GST से जुड़े सभी नियमों का पालन करें।सवाल: अगर हमें किसी इन्वेस्टर से बिज़नेस में लगाने के लिए रकम मिलती है तो क्या उस पर कोई टैक्स देना पड़ता है? अगर हां, तो किस स्लैब के अनुसार टैक्स देना होगा?- तनुष गुप्ताजवाब: अगर आप भारत में बिज़नेस में इन्वेस्ट करने के लिए किसी इन्वेस्टर से रकम लेते हैं तो इसे इक्विटी या शेयर कैपिटल माना जाएगा। इसका मतलब यह है कि इन्वेस्टर से मिलने वाली रकम पर आपको कोई टैक्स नहीं देना होगा। हालांकि, अगर आप इक्विटी या शेयर कैपिटल की बजाय इन्वेस्टर से लोन लेते हैं तो लोन पर मिलने वाला ब्याज इनकम टैक्स ऐक्ट के दायरे में आ सकता और उस पर तय स्लैब के अनुसार टैक्स देना होगा।यह भी ध्यान रखें कि बिज़नेस में टैक्स लगना इस बात पर निर्भर करता है कि इन्वेस्टमेंट किस प्रकार किया गया है, इन्वेस्टमेंट का स्ट्रक्चर कैसा है और बिज़नेस की प्रकृति कैसी है। ज्यादा जानकारी के लिए टैक्स एडवाइजर या CA से मिलें।सवाल: अगर कोई शख्स अपना बिज़नेस शुरू करने की योजना बना रहा है तो बिज़नेस आइडिया के बारे में चर्चा करने और फंड लेने के लिए किसी वेंचर कैपिटलिस्ट से कैसे संपर्क किया जाए?-ऋषि जवाब: इसके लिए इन स्टेप्स को फॉलो करें:बिज़नेस प्लान बनाएं: सबसे पहले आपको बिज़नेस का प्लान बनाना चाहिए। इसमें बिज़नेस विज़न, मिशन, मार्केट अवसर, प्रतियोगी, मार्केट स्ट्रैटिजी, फाइनैंशल प्रोजेक्शन और दूसरी जरूरी जानकारी शामिल होनी चाहिए।संभावित निवेशकों की पहचान करें: आपके जैसे बिज़नेस में इन्वेस्ट करने वाले वेंचर कैपिटलिस्ट के बारे में रिसर्च करें और उनकी पहचान करें।मीटिंग तय करें: वेंचर कैपिटल फर्म से संपर्क करें और अपने बिज़नेस आइडिया पर चर्चा करने के लिए मीटिंग तय करें।अपना बिज़नेस प्लान पेश करें: मीटिंग के दौरान अपना बिज़नेस प्लान पेश करें और हर सवाल का जवाब के लिए तैयार रहें। साथ ही जरूरत पड़ने पर अतिरिक्त जानकारी मुहैया कराएं।शर्तों पर बातचीत करें: अगर वेंचर कैपिटलिस्ट आपके बिज़नेस में इन्वेस्ट करने में रुचि रखता है तो इन्वेस्टमेंट की शर्तों पर बातचीत करने के लिए तैयार रहें। इसमें फंडिंग, इक्विटी और दूसरे नियम और शर्तें शामिल हो सकते हैं।सवाल: हमारी कंपनी सॉफ्टवेयर डिवेलपमेंट से जुड़ी है। इसे हमने 2016 में रजिस्टर कराया था। साल 2021-22 तक हमारी बैलेंस शीट नुकसान में रही है। स्टार्टअप स्कीम के तहत क्या हमें कोई लोन मिल सकता है?- रजत जैनजवाब: स्टार्टअप इंडिया स्कीम के तहत स्टार्टअप्स के लिए फंडिंग के कई विकल्प मौजूद हैं। हालांकि, प्रत्येक प्रकार की फंडिंग के लिए एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया अलग-अलग हो सकता है।स्टार्टअप इंडिया योजना के अंतर्गत Credit Guarantee Fund Trust for Micro and Small Enterprises (CGTMSE) स्टार्टअप्स और MSMEs (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों) को 2 करोड़ रुपये तक का लोन मिलता है। इस योजना के तहत लोन लेने की कुछ शर्तें इस प्रकार हैं:- स्टार्टअप प्राइवेट लिमिटेड कंपनी, LLP या किसी दूसरी कानूनी इकाई के रूप में रजिस्टर होना चाहिए।- सालाना टर्नओवर 25 करोड़ रुपये से कम होना चाहिए।- स्टार्टअप के पास बिज़नेस प्लान होना चाहिए जो तकनीकी और वित्तीय रूप से बढ़िया हो। बैंकों की बकाया रकम न हो।नोट: लोन लेने के लिए इसके अलावा और भी दूसरी योजनाएं हैं, जैसे- स्टैंडअप इंडिया स्कीम, SIDBI Make in India Loan for Enterprises (SMILE) स्कीम आदि।नोट: अगले इशू में पढ़ें- कंपनी का अकाउंट मैनेजमेंट कैसे करें और इसके लिए कौन-कौन-से टूल्स इस्तेमाल करें।

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- कार्तिक शर्मा, नैशनल चेयरमैन, AIMA-YLC- आनंद नायक, को-फाउंडर, Chai Sutta Bar- इरफान कवूसा, वर्टिकल हेड, इन्वेस्टर और फ्रेंचाइजी रिलेशंस, Statiq- गगन आनंद, फाउंडर, Scuzo Ice 'O' Magic- दीपशिखा शर्मा, CEO, शार्प साइट आई हॉस्पिटल


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