ओमप्रकाश अश्क,पटना: बिहार के सीएम नीतीश कुमार का बीजेपी के प्रति कैसा नजरिया है, इसे वह किसी को समझने नहीं देते। हमेशा उलझा कर रखते हैं। इसीलिए तरह-तरह के अनुमान-अटकलें लगते रहते हैं। अटकल-अनुमान की वे पूरी गुंजाइश बना देते हैं। बुधवार को उन्होंने बिना नाम लिये गृह मंत्री अमित शाह को सब कुछ सुना दिया था, पर पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुप रहे। अटल बिहारी वाजपेयी की तारीफ की। गुरुवार को वे मुजफ्फरपुर में बने एथेनॉल प्लांट का उद्घाटन करने पहुंचे तो अपने भाषण में उन्होंने पीएम मोदी के लिए ‘आदरणीय प्रधानमंत्री जी’ का संबोधन किया। कार्यक्रम में शरीक हुए बीजेपी एमएलसी और पूर्व उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन की इस बात के लिए तारीफ की कि बीजेपी के दूसरे नेता उनके कार्यक्रम में शामिल होने से परहेज करते हैं, लेकिन शाहनवाज जी ने वैसा नहीं किया।
नीतीश ने कहा- शाहनवाज जी से मेरे निजी संबंध
सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि सैय्यद शाहनवाज हुसैन जी से हमारा व्यक्तिगत संबंध है। वे यहां उपस्थित हैं, यह काफी खुशी की बात है। दूसरे लोग यहां आने की हिम्मत नहीं करते। अपने इस कथन से उन्होंने यह भी सार्वजिनक कर दिया कि बीजेपी के प्रति उनके मन में दुश्मनी का कोई स्थायी भाव नहीं है। अमित शाह के आरोपों पर बुधवार को भी उन्होंने जो कहा था, उसका भी संकेत साफ था कि बीजेपी में अमित शाह ही सब कुछ नहीं हैं। शाह ने कहा था कि बीजेपी में नीतीश के लिए सदा के लिए दरवाजे बंद हो गए हैं। इस पर नीतीश ने कहा था कि उनका कौन-सा दरवाजा है, जो बंद करेंगे ?नरेंद्र मोदी के प्रति नफरत है तो आदर भी है
नीतीश कुमार की जरा इस बात पर गौर कीजिए- ‘2020 में जब हम मिले तो हमने आदरणीय प्रधानमंत्री जी से मिलकर बिहार में एथेनॉल प्लांट लगाने से संबंधित वर्ष 2007 एवं उसके बाद जितने भी प्रयास किये गये, उन तमाम चीजों से उन्हें अवगत कराया।‘ ये वही नीतीश कुमार हैं, जिन्होंने 31 दिसंबर 2022 को पीएम मोदी के बारे में कहा था- ‘आजकल आधुनिक भारत के नये पिता की चर्चा हो रही है। क्या किया है उन्होंने देश के लिए ? कुछ काम किये है ? कहां भारत आगे बढ़ा है ? कौन सा काम हुआ है ? केवल प्रचार हुआ है। रामनवमी हिंसा के बाद सियासी तनातनी के बावजूद आज उनकी जुबान से पीएम के लिए आदरणीय संबोधन सुन कर थोड़ा आश्चर्य भी हुआ और अनुमान भी लगा कि बीजेपी के प्रति उनके मन में अब भी कोई कोना खाली पड़ा है।नीतीश कुमार पर किसी को संदेह क्यों होता है ?
नीतीश कुमार ने दो बार भाजपा का साथ छोड़ा और इतनी ही बार जोड़ा भी है। साथ छोड़ कर वे आरजेडी के पास जाते रहे हैं और अधिकतम 17 महीने साथ रह पाने का रिकार्ड है। इसके ठीक पलट सितंबर 22 के बाद से अब तक के 6 और पिछले 17 महीने यानी कुल 23 महीने ही वे आरजेडी के साथ रहे हैं। बिहार में 17 साल के अपने कार्यकाल में नीतीश अधिकतर समय बीजेपी के साथ ही रहे। आरजेडी के जंगल राज के विरोध के बूते ही तो बिहार की सत्ता हासिल उन्होंने हासिल की थी। कभी खुल कर तो अधिकतर बिना नाम लिये नीतीश अपने शासन से जंगल राज की तुलना करते रहे हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान तो उन्होंने जेडीयू का चुनावी कैंपेन को ही लालू-राबड़ी के 15 साल और अपने शासन के 15 साल की तुलना पर आधारित किया था। लालू परिवार भी उनकी आलोचना में कभी पीछे नहीं रहा। लालू-राबड़ी ने पलटू राम का विशेषण उनको दिया तो बेटों- तेजस्वी-तेज प्रताप ने व्यंग्य में नीतीश को चाचा कहना शुरू किया। सुशासन बाबू की छवि पर पलटू राम के विशेषण और चाचा के व्यंग्यात्मक संबोधन ने नीतीश कुमार के मन में कितनी कोफ्त पैदा की होगी, इसका महज अनुभव किया जा सकता है। (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। लेख में वर्णित विचार इनके व्यक्तिगत हैं। इससे एनबीटी का कोई संबंध नहीं है)from https://ift.tt/AWR1PFf
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