मुंबई: अब तक एनसीपी के सर्वेसर्वा रहे ने मंगलवार को ऐसा सियासी धमाका किया जो पार्टी के कार्यकर्ताओं और उनके कट्टर समर्थकों के लिए बिलकुल भी मंगलकारी नहीं था। शरद पवार की राजनीतिक आत्मकथा की किताब के विमोचन के मौके पर उनके समर्थक राज्य के कोने कोने से आये थे। सब कुछ ठीक भी चल रहा था। मंच पर शरद पवार भाषण भी दे रहे थे। तभी अचानक हॉल में मातम सा पसर गया। लोग कहने लगे ऐसा नहीं हो सकता। शरद पवार अपना फैसला वापस लीजिये। दरअसल शरद पवार ने मुंबई के वाईबी चव्हाण सेंटर में भाषण के दौरान अपने राजनीतिक संन्यास का ऐलान कर दिया था। उन्होंने कहा कि अब वह एनसीपी के अध्यक्ष पद से खुद को अलग कर रहे हैं। वह अब इस पद पर नहीं रहेंगे। पवार के बयान के पीछे की वजह तलाशने की भी कवायद शुरू हो चुकी है। नवभारत टाइम्स ऑनलाइन ने इस मुद्दे पर राजनीतिक विश्लेषक सुरेश माने से बातचीत की। 2024 के पहले राजनीतिक वारिस को पेश करने की कवायदसबसे बड़ी बात यह है कि साल 2024 के पहले शरद पवार अपने राजनितिक वारिस को पेश करना चाहते होंगे और यह सबसे ऐसा करने के लिए सबसे अच्छा मौका है। अब यह वारिस कोई भी हो सकता है अजित पवार, सुप्रिया सुले या फिर कोई अन्य व्यक्ति। हालांकि, कुछ हद तक इसका राजनीतिक नुकसां भी महाविकास अघाड़ी को होगा। भले ही अगर शरद पवार ने एमवीए के संस्थापक रहे हों लेकिन अगर वह इसमें कोई भूमिका नहीं लेते तो यह एमवीए के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है। शरद पवार के लिए अब यह भी कश्मकश है कि पार्टी का अगला अध्यक्ष कौन होगा? वह परिवार का होगा या बाहर का होगा? आदमी से ज्यादा यहाँ परिवारवाद भी मायने रखता है। जिसे संतुलित करना शरद पवार की जिम्मेदारी होगी।जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए शरद पवार सुरेश माने ने कहा कि इस फैसले की वजह से अब शरद पवार अपनी पार्टी के बोझ या जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए हैं। इसके अलावा अब बीजेपी के लिए एनसीपी के बहाने शरद पवार पर अटैक कर पाना भी मुश्किल होगा। माने के मुताबिक बीजेपी शरद पवार पर पालिसी या पार्टी स्तर पर कम आलोचना करती है। बल्कि वह व्यक्ति रूप से ज्यादा पवार पर हमलावर नजर आती है। ऐसे में जब वह खुद को पार्टी से अलग कर देते हैं तो पवार के ऊपर हमला करना मुश्किल है। क्योंकि अब तक एनसीपी पर हमला मतलब पवार पर हमला था। अब एनसीपी और शरद पवार दोनों अलग अलग हो गए हैं। सभी को सही जगह पर प्लेस करेंगे शरद पवार माने ने कहा कहा कि अजित पवार हों, सुप्रिया सुले हों या फिर जयंत पाटिल हों शरद पवार सभी को सही जगह पर प्लेस करेंगे। शरद पवार को सबके बीच में काम बांटना होगा अगर वह ऐसा करते हैं तो शायद पार्टी में विवाद की स्थिति कुछ कम होगी। हालांकि, पवार के जाने से कई दिक्कतें पैदा हो सकती है। राज्य और राष्ट्रीय स्तर दोनों पर। हाल में पार्टी ने राष्ट्रीय दल का तमगा खोया है अब उनका नेशनल प्रेसिडेंट भी चला गया। इसका राज्य और राष्ट्रीय स्तर एनसीपी को खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। 2024 के पहले भविष्य में एनसीपी की राजनीति तय करने वाला यह फैसला है। सोच समझकर यह फैसला लिया हैवहीं सीनियर जर्नलिस्ट सचिन परब ने नवभारत टाइम्स ऑनलाइन से बातचीत में कहा कि शरद पवार के भाषण की पीडीएफ कॉपी पहली बार पत्रकारों के साथ शेयर की गयी है। इसके पहले कभी भी ऐसा नहीं हुआ है। इसका मतलब साफ़ है कि शरद पवार ने यह सब एक सोची समझी रणनीति के तहत किया है। परब ने कहा कि बात का अंदेशा पहले से ही था लेकिन यह इतनी जल्दी होगा यह नहीं सोचा था। शरद पवार के मन में क्या चल रहा है इसको समझ पाना आसान नहीं है।
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