नई दिल्लीः कर्नाटक में दोबारा सत्ता में नहीं लौट पाई। कर्नाटक विधानसभा के इतिहास में यह कोई नई परिघटना नहीं है। तकरीबन साढ़े तीन दशक के इतिहास में हर बार ऐसा ही हुआ है, जब कोई सरकार सरकार अगली बार सत्ता में न लौटी हो। दूसरी बात यह रही है कि जब-जब मतदान बढ़ा, कर्नाटक में सत्ता परिवर्तन हुआ। अब तक 8 बार हुए असेंबली इलेक्शन में कम से कम 7 बार तो ऐसा ही देखने को मिला है। लेकिन इसे विश्लेषण का पैमाना बनाना उचित नहीं होगा। भाजपा को स्वीकार करना होगा कि उससे कहीं न कहीं चूक हुई है। उसके आजमाए नुस्खे अब कारगर नहीं रहे। खासकर अहिन्दी भाषी प्रदेशों में। अगले साल लोकसभा का चुनाव होना है। कर्नाटक चुनाव को लोग लोकसभा चुनाव के पूर्वाभ्यास के तौर पर देख रहे थे। लोकसभा की देशव्यापी जंग के लिए बीजेपी को कर्नाटक में जीतना जरूरी था। पर, ऐसा नहीं हुआ। संभव है कि बीजेपी अब अपनी रणनीति में परिवर्तन करे।
हिन्दुत्व और देवी-देवता के भरोसे अब नहीं चलेगा काम
कर्नाटक में पिछले ही साल से धार्मिक आधार पर हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण के प्रयास में बीजेपी लगी थी। हलाला, हिजाब और अजान तक के मुद्दे कर्नाटक में गूंजते रहे। बीजेपी को उम्मीद थी कि इसके जरिए हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण करना आसान होगा। आखिरी वक्त में तो ऐसा लगा कि चुनाव के मूल मुद्दे अब कोई मायने नहीं रखते। धार्मिक ध्रुवीकरण में बजरंगबली की भी एंट्री कांग्रेस और बीजेपी ने करा दी। कांग्रेस ने बीजेपी की हिन्दू ध्रुवीकरण की चाल को विफल करने के लिए बजरंग दल पर बैन लगाने का वादा किया। बीजेपी ने इसे अपने पक्ष में भुनाने के लिए बजरंग बली का नारा उछाल दिया। बीजेपी ने ऐसा कर कांग्रेस को हिन्दू विरोधी बताने की कोशिश की। अब परिणामों से साफ हो गया है कि अहिन्दी भाषी प्रदेशों में देवी-देवता, मंदिर-मस्जिद और हिन्दू-मुस्लिम के बल पर चुनावी वैतरणी पार करना संभव नहीं। कर्नाटक से पहले पश्चिम बंगाल में भी बीजेपी ने जय श्रीराम का नारा देकर मैदान फतह की कल्पना की थी। वहां भी बीजेपी को कोमयाबी नहीं मिली।नये चेहरा गुजरात में कामयाब रहे, तो कर्नाटक में फेल
पुराने चेहरों को बदल कर नये चेहरे चुनाव में उतारने का प्रयोग बीजेपी ने गुजरात से शुरू किया था। गुजरात में इससे मिली कामयाबी को बीजेपी ने एक अस्त्र मान लिया था। अपने इस परखे प्रयोग को बीजेपी ने कर्नाटक में दोहराया। लगभग 70 नये चेहरों को पार्टी ने टिकट दिया। पर, गुजरात का सफल प्रयोग कर्नाटक में विफल हो गया। बीजेपी ने अपने कई कद्दावर नेताओं को भी इस प्रयोग में बलि चढ़ा दी। कर्नाटक में बीजेपी को जमीन मुहैया कराने वाले पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा को इस बार के चुनाव में किनारे कर दिया गया। एक और पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी को भी बीजेपी ने टिकट से वंचित कर दिया। शेट्टार और सावदी नाराज होकर कांग्रेस के साथ हो गए। येदियुरप्पा, शेट्टार और सावदी लिंगायत समुदाय के बड़े नेताओं में शुमार किए जाते हैं। बीजेपी से बिछड़े तीनों ने कांग्रेस की पैठ लिंगायत समाज भी करा दी। इसी लिंगायत कम्युनिटी की वजह से 2018 के असेंबली इलेक्शन में बीजेपी को खासा सीटें मिली थीं।पीएम नरेंद्र मोदी का भी अब जनता में घटता जा रहा क्रेज
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नाम पर वोटर टूट पड़े थे। उसके बाद मोदी के बारे में यह आम धारणा बन गई कि बीजेपी को कहीं भी किसी चुनाव में जीत दिलाने का माद्दा नरेंद्र मोदी में है। 2014 के बाद से देश में अधिकतर विधानसभाओं के चुनाव मोदी के नाम पर ही लड़े गए। हालांकि पश्चिम बंगाल में नरेंद्र मोदी के बारे में बनी यह धारणा ममता बनर्जी ने ध्वस्त कर दी थी। कर्नाटक में भी मोदी से लोगों को किसी करिश्मा की उम्मीद थी। मोदी ने कर्नाटक में तूफानी दौरे किए। अनगिनत रैलियां कीं। लेकिन सब बेअसर रहा। इसका संदेश साफ है कि अब मोदी का चेहरा करिश्माई नहीं रह गया है। यह जरूर है कि उनके नाम पर कुछ वोट जरूर मिलते होंगे, लेकिन विधानसभा चुनावों में उनके नाम का सिक्का अब नहीं चलने वाला। पीएम मोदी ने कर्नाटक में 25 चुनावी कार्यक्रम किए, जिनमें रैली, जनसभा और रोड शो शामिल थे। इसके बावजूद बीजेपी सत्ता से दूर रही। 2018 में वह सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकिन सरकार बनाने के लिए उसे जेडीएस से गंठजोड़ करना पड़ा था। इस बार तो उतनी भी संख्या नहीं मिली, जिसमें जोड़-तोड़ से सरकार की गुंजाइश बने।मुस्लिम वोटरों में सीएम योगी की तरह जगाना होगा भरोसा
यह तो सभी जानते हैं कि मुस्लिम वोटर नरेंद्र मोदी के कारण बीजेपी से सटना नहीं चाहते। यह भी सच है कि हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण आसान काम नहीं। भले ही यह कोशिश, राम, कृष्ण, शिव, दुर्गा या बजरंगबली के नाम पर की जाए। या फिर मंदिरों के निर्माण के जरिये इसकी कोशिश हो। जनता (वोटर) की अपनी समस्याएं हैं, जिनका निपटारा सही ढंग से होता रहे तो देवी-देवता या हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। यह समझने के लिए उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली को जानना होगा। अपने दम पर योगी ने यूपी में हर वर्ग के वोटरों को साध लिया है। अपराध पर अंकुश लगा कर या भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त एक्शन लेकर योगी ने निकाय चुनावों से लेकर लोकसभा चुनावों तक जीत दिलाने का माहौल बना दिया है। कर्नाटक में बीजेपी की हार के पीछे भ्रष्टाचार का का भी अहम रोल रहा। कांग्रेस ने शुरू से ही बीजेपी के खिलाफ करप्शन का एजेंडा सेट कर दिया था। करप्शन के मुद्दे पर ही एस. ईश्वरप्पा को मंत्री पद छोड़ना पड़ा था। बीजेपी के एक विधायक को तो जेल जाना पड़ा। स्टेट कांट्रैक्टर एसोसिएशन ने पीएम तक से करप्शन-कमीशन की शिकायत की थी। बीजेपी वोटरों को करप्शन मुक्त कर्नाटक का भरोसा नहीं दिला पाई। नतीजा सामने है। (आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)from https://ift.tt/SGgkcWA
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