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Sunday, 8 January 2023

संपादकीय: जातीय जनगणना पर बिहार ने बढ़ाए कदम, बाकी सरकारों का क्या होगा रुख

बिहार में बहुचर्चित जातिगत जनगणना का पहला चरण शनिवार से शुरू हो गया। राज्य की महागठबंधन सरकार के इस कदम पर सबकी नजरें टिकी हैं। इसकी राजनीतिक अहमियत तो है ही, कई अन्य लिहाज से भी यह कदम महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अगर जातिवार गणना का यह काम सफलतापूर्वक पूरा हो जाता है तो 1930 के बाद से पहली बार राज्य में विभिन्न जातियों की संख्या को लेकर अधिकृत आंकड़े सामने आएंगे। 2011 की जनगणना में देश भर में जाति से जुड़े आंकड़े इकट्ठा जरूर किए गए थे, लेकिन बड़े पैमाने पर गलतियों के मद्देनजर इन्हें सार्वजनिक नहीं किया गया। इस बार भी जातिगत जनगणना को लेकर राजनीतिक दलों में ही नहीं, सरकारों के बीच भी खासा मतभेद है। केंद्र सरकार न केवल जातिगत जनगणना की जरूरत महसूस नहीं करती बल्कि सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करके इसे अव्यावहारिक बता चुकी है। जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में एक राजनीतिक प्रतिनिधिमंडल इस मसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने गया था तो बीजेपी भी खुद को उससे अलग नहीं रख पाई थी। राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी चाहे जो भी कहती हो, प्रदेश में पार्टी के नेताओं ने कभी ऐसी कोई बात नहीं कही जिससे उन्हें इस मांग के खिलाफ माना जाए। ऐसे में बिहार में जातिगत जनगणना को लेकर राजनीतिक सर्वसम्मति शुरू से रही है। फिर भी देखना होगा कि यह कवायद कहां तक आगे बढ़ती है और इसे कितनी कामयाबी मिलती है। क्या इस बार भी उसमें वैसी ही गलतियां होंगी, जिनकी वजह से 2011 की इस कवायद के नतीजे बाहर नहीं आ सके? अगर नहीं तो उन गलतियों से बचने के लिए राज्य सरकार ने कौन से विशेष उपाय किए? वैसे राज्य सरकार अभी से यह साफ कर चुकी है कि नतीजे चाहे जो भी हों, उन्हें सार्वजनिक किया जाएगा। माना जा रहा है कि गिनती से ओबीसी और पिछड़े जाति समूहों के लोगों का कुल आबादी में बढ़ा हुआ अनुपात स्थापित होगा, जिसके बाद उनके लिए आरक्षण प्रतिशत में बढ़ोतरी की मांग को तथ्यों का बल हासिल होगा। बहरहाल, अभी तो ये अनुमानों-आशंकाओं के ही दायरे में आने वाली बातें हैं। वैसे जाति से अलग इसका प्रशासनिक पहलू भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। जैसा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा भी है कि इस कार्यक्रम में सभी जाति समूहों से जुड़े परिवारों की आर्थिक स्थिति से जुड़े आंकड़े इकट्ठा किए जाने हैं। यानी सारे आंकड़े ठीक से इकट्ठा कर लिए गए तो हर क्षेत्र की आबादी की सामाजिक और आर्थिक स्थिति की सटीक जानकारी उपलब्ध हो जाएगी। स्वाभाविक ही इससे नीति निर्धारण में आसानी होगी। बहुत संभव है कि कई अन्य राज्य भी बिहार सरकार के इस कदम से प्रेरित हों। मगर सबसे पहले यह देखना होगा कि बिहार सरकार की यह पहल किस हद तक अपनी तार्किक परिणति तक पहुंचती है।


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