प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को अमेरिका रवाना हो रहे हैं। 2014 के बाद से वह बतौर प्रधानमंत्री छह बार अमेरिका जा चुके हैं, लेकिन इस यात्रा को उनकी पिछली तमाम यात्राओं से ज्यादा अहमियत दी जा रही है तो उसके पीछे ठोस वजहें हैं। पहली बात तो यही कि यह पहला मौका है, जब वह बाकायदा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के आमंत्रण पर वहां जा रहे हैं। उनकी इस यात्रा को स्टेट विजिट का दर्जा हासिल है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में उनसे पहले सिर्फ दो नेता ऐसे रहे, जो अमेरिका के स्टेट विजिट पर गए। पहले 1963 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह। जाहिर है, अगर अमेरिका ने आज के माहौल में प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा को इतनी अहमियत देने का फैसला किया तो वह अकारण नहीं है। ऐसी कूटनीतिक पहल काफी सोच-समझकर तय की जाती है। इस संदर्भ में देखें तो इसमें कोई शक नहीं कि भारत और अमेरिका के रिश्ते नई ऊंचाइयां छूने की ओर हैं। पहले की तरह अब इसमें विश्वास का कोई संकट नहीं रह गया है। जिन समझौतों पर दोनों पक्षों में सहमति बन चुकी है और जिन पर हस्ताक्षर की औपचारिकता इस दौरे में पूरी होनी है, वे न केवल दोनों देशों के लिए फायदेमंद हैं बल्कि द्विपक्षीय रिश्तों के नए चरण की शुरुआत के भी साक्षी बनेंगे। खासकर GE 414 फाइटर जेट इंजन भारत में बनाने का समझौता और अमेरिकी ड्रोन खरीदने का समझौता। ये सौदे दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों को मजबूत आधार देंगे और अमेरिका में यह उम्मीद बन रही है कि इससे हथियारों के मामले में भारत की रूस पर निर्भरता कम करने में भी मदद मिलेगी। यूक्रेन युद्ध के मामले में भारत की स्वतंत्र भूमिका अमेरिका को शुरू से खटकती रही है। उसकी कोशिश रही है कि भारत खुलकर रूस की निंदा करे। अच्छी बात यह है कि दोनों देश एक दूसरे की स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए आपसी सहयोग बढ़ाने की राह पर चल रहे हैं। इसलिए आगे भी इसमें कोई बाधा आने के आसार नहीं हैं। एक अन्य पहलू चीन का है, जिसकी बढ़ती आक्रामकता ने दोनों देशों में चिंता पैदा की है। क्वॉड से लेकर आई2यू2 तक तमाम मंचों पर भारत और अमेरिका आपसी तालमेल कायम रखते हुए इस साझा चुनौती का मुकाबला कर रहे हैं। यह समीकरण भी इस सोच को मजबूती दे रहा है कि अगर भारत और अमेरिका एक-दूसरे के साथ सहयोग करें तो कई मामलों में चीन से सप्लाई पर निर्भरता कम की जा सकती है। खास तौर पर कोरोना महामारी के बाद के दौर में लोकतांत्रिक और उदार मूल्यों के साथ जी रहे देशों में यह जरूरत तीव्रता से महसूस की जा रही है। उम्मीद है कि मौजूदा अंतरराष्ट्रीय हालात में प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा न सिर्फ द्विपक्षीय मामलों में सहयोग बढ़ाएगा बल्कि पूरी दुनिया को सकारात्मक संदेश देने वाला साबित होगा।
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